संविधान निर्माण में शामिल महिलाएं

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  1. अम्मु स्वामीनाथन

 

अम्मु स्वामीनाथन का जन्म केरल के पालघाट जिले के अनाकारा में हुआ था। उन्होंने 1917 में मद्रास में एनी बेसेंट, मार्गरेट कजिन्स, मालथी पटवर्धन, श्रीमती दादाभाय और श्रीमती अंबुजमल के साथ वीमेंस इंडिया एसोसिएशन का गठन किया। वह 1946 में मद्रास निर्वाचन क्षेत्र से संविधान सभा का हिस्सा बन गईं। 24 नवंबर, 1949 को संविधान के मसौदे को पारित करने के लिए डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा पेश प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान अपने भाषण में आशावादी और आत्मविश्वास से लैश अम्मु ने कहा, ‘बाहर के लोग कह रहे हैं कि भारत ने अपनी महिलाओं के बराबर अधिकार नहीं दिये हैं। अब हम कह सकते हैं कि जब भारतीय लोगों ने स्वयं अपने संविधान का निर्माण किया तो उन्होंने देश के हर दूसरे नागरिक के बराबर महिलाओं को अधिकार दिये हैं।’ वह 1952 में लोकसभा के लिए चुनी गईं और 1954 में राज्यसभा के लिए। 1959 में, अम्मु सत्यजीत रे के साथ फिल्म सोसायटी के उपाध्यक्ष बने। उन्होंने भारत स्काउट्स एंड गाइड (1960-65) और सेंसर बोर्ड की भी अध्यक्षता की।

 

  1. दक्षयानी वेलायुद्धन

 

दक्षयानी वेलायुद्ध का जन्म 4 जुलाई 1912 को कोचीन में बोल्गाटी द्वीप पर हुआ था। सामाजिक रूप से भेदभाव के शिकार पुलाया समुदाय की पहली पीढ़ी की शिक्षितों में से एक थीं। वह पुलाया समुदाय की पहली पीढ़ी की उन महिलाओं में थीं जिन्होंने पहली बार अधोवस्त्र पहना था, तब केरल में दलित महिलाओं ने लम्बे संघर्ष के बाद ऊपर के वस्त्र पहनने का अधिकार प्राप्त किया था। 1945 में उन्हें कोचीन विधान परिषद में राज्य सरकार द्वारा नामित किया गया था। वह 1946 में संविधान सभा के लिए चुने जाने वाली पहली और एकमात्र दलित महिला थीं। उन्होंने अनुसूचित जाति समुदाय से संबंधित कई मुद्दों पर संविधान सभा में बहसों के दौरान डॉ. अम्बेडकर का साथ दिया था।

 

  1. बेगम अजाज रसूल

 

मालरकोटला के रियासत परिवार में पैदा हुई बेगम अजाज रसूल की शादी नवाब अजाज रसूल से हुई थी। वह संविधान सभा की एकमात्र मुस्लिम महिला सदस्य थीं। भारत सरकार 1935 के अधिनियम लागू होने के बाद बेगम और उनके पति ने मुस्लिम लीग से और चुनावी राजनीति में प्रवेश किया। 1937 के चुनावों में, वह यूपी विधानसभा के लिए चुनी गई थीं।

 

1950 में, भारत में मुस्लिम लीग भंग हो गया और बेगम अजाज रसूल कांग्रेस में शामिल हो गईं। वह 1952 में राज्यसभा के लिए चुनी गई थीं और 1969 से 1990 तक उत्तर प्रदेश विधानसभा की सदस्य थीं। 1969 और 1971 के बीच, वह सामाजिक कल्याण और अल्पसंख्यक मंत्री थीं। 2000 में, उन्हें सामाजिक कार्य में योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।

 

  1. दुर्गाबाई देशमुख

 

दुर्गाबाई देशमुख का जन्म 15 जुलाई 1909 को राजमुंदरी में हुआ था। बारह वर्ष की आयु में, उन्होंने असहयोग आंदोलन में भाग लिया और आंध्र केसरी टी प्रकाशम के साथ, उन्होंने मई 1930 में मद्रास शहर में नमक सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया। 1936 में, उन्होंने आंध्र महिला सभा की स्थापना की, जो एक दशक के भीतर मद्रास शहर में शिक्षा और सामाजिक कल्याण का एक महान संस्थान बन गया। वह केंद्रीय सामाजिक कल्याण बोर्ड, राष्ट्रीय शिक्षा परिषद और राष्ट्रीय समिति पर लड़कियों और महिलाओं की शिक्षा जैसे कई केंद्रीय संगठनों की अध्यक्ष थीं। वह संसद और योजना आयोग की सदस्य थीं। वह आंध्र एजुकेशनल सोसाइटी, नई दिल्ली से भी जुड़ी थीं। 1971 में भारत में साक्षरता के प्रचार में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए दुर्गाबाई को चौथे नेहरू साहित्यिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 1975 में, उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।

 

  1. हंसा जिवराज मेहता

 

3 जुलाई, 1897 को बड़ौदा के दीवान मनुभाई नंदशंकर मेहता के यहां पैदा हुई, हंसा ने इंग्लैंड में पत्रकारिता और समाजशास्त्र का अध्ययन किया। एक सुधारक और सामाजिक कार्यकर्ता होने के साथ-साथ वह एक शिक्षक और लेखक भी थीं। उन्होंने गुजराती में बच्चों के लिए कई किताबें लिखीं और गुलिवर ट्रेवल्स समेत कई अंग्रेजी कहानियों का भी अनुवाद किया। वह 1926 में बाम्बे स्कूल कमेटी के लिए चुनी गई और 1945-46 में अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की अध्यक्ष बनीं । हैदराबाद में आयोजित अखिल भारतीय महिला कांफ्रेंस के सम्मेलन में अपने अध्यक्षीय संबोधन में, उन्होंने महिलाओं के अधिकारों का चार्टर प्रस्तावित किया। उन्होंने 1945 से 1960 तक भारत में विभिन्न पदों को सुशोभित किया, जैसे एस.एन. डीटी महिला विश्वविद्यालय की कुलपति, अखिल भारतीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की सदस्य, इंटर-यूनिवर्सिटी बोर्ड आफ इंडिया की अध्यक्ष और बड़ौदा महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय की कुलपति के रूप में भी उन्होंने उल्लेखनीय काम किया।

 

  1. कमला चौधरी

 

कमला चौधरी का जन्म लखनऊ के समृद्ध परिवार में हुआ था, इसके बावजूद अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए उन्हें संघर्ष करना पड़ा। अंग्रेज सरकार के लिए अपने परिवार की निष्ठा से अलग होकर वे राष्ट्रवादियों में शामिल हो गई और 1930 में गांधी द्वारा शुरू की गई नागरिक अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय भागीदार रहीं। वह अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के 54वें सत्र में उपाध्यक्ष थीं और सत्तर के उत्तरार्ध में लोकसभा के सदस्य के रूप में चुनी गयी थीं। चौधरी एक प्रसिद्ध कहानीकार थीं।

 

  1. लीला राय

 

लीला राय का जन्म अक्टूबर 1900 में असम के गोलपाड़ा में हुआ था। उनके पिता एक डिप्टी मजिस्ट्रेट थे और राष्ट्रवादी आंदोलन के साथ सहानुभूति रखते थे। उन्होंने 1921 में बेथ्यून कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और बंगाल महिला मताधिकार समिति की सहायक सचिव बनीं और महिलाओं के अधिकारों की मांग की। 1923 में, अपने दोस्तों के साथ, उन्होंने ‘दीपाली संघ’ की स्थापना की और उसके तहत स्कूलों की स्थापना की जो राजनीतिक चर्चा के केंद्र बन गए, जिसमें तत्कालीन बड़े नेताओं ने भाग लिया। बाद में, 1926 में ढाका और कोलकाता में महिला छात्रों के एक संगठन की स्थापना की। उन्होंने ढाका महिला सत्याग्रह संघ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, जिसने नमक-आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी। वह जयश्री पत्रिका की संपादक बनीं, जिसे रवींद्रनाथ टैगोर का आशीर्वाद था। 1937 में, वह कांग्रेस में शामिल हो गईं और अगले वर्ष, बंगाल प्रांतीय कांग्रेस महिला संगठन की स्थापना की। वह सुभाष चंद्र बोस द्वारा गठित महिला उप समिति की सदस्य बन गईं और जब बोस 1940 में जेल गये, तो उन्हें फारवर्ड ब्लाक वीकली के संपादक की जिम्मेवारी मिली। भारत छोड़ने से पहले नेताजी ने लीला राय और उनके पति को पार्टी गतिविधियों का पूरा प्रभार दिया। 1947 में, उन्होंने पश्चिम बंगाल में एक महिला संगठन, जातीय महिला संघ की स्थापना की। 1960 में, वह फारवर्ड ब्लाक और प्रजा समाजवादी पार्टी के विलय के साथ गठित नई पार्टी की अध्यक्ष बन गईं, लेकिन इसके काम से निराश थीं।

 

  1. मालती चौधरी

 

मालती चौधरी का जन्म 1904 में पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) में एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। 1921 में, 16 साल की उम्र में, मालती चौधरी को शांतिनिकेतन भेजा गया जहां उन्हें विश्व भारती में दाखिला लिया। उन्होंने नाबकृष्ण चौधरी से विवाह किया, जो बाद में ओड़िशा के मुख्यमंत्री बने और 1927 में ओड़िशा चले गए। नमक सत्याग्रह के दौरान, मालती चौधरी, अपने पति के साथ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गई और आंदोलन में भाग लिया। उन्होंने सत्याग्रह के लिए अनुकूल वातावरण बनाने के लिए लोगों के साथ संवाद किया। 1933 में, उन्होंने उत्कल कांग्रेस समाजवादी कर्मी संघ का गठन अपने पति के साथ किया जिसे बाद में अखिल भारतीय कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की उड़ीसा प्रांतीय शाखा के रूप में जाना जाने लगा। 1934 में, वह उड़ीसा में गांधी जी की प्रसिद्ध ‘पदयात्रा’ में गांधीजी से जुड़ गईं। उन्होंने ओड़िशा में कमजोर समुदायों के उत्थान के लिए बाजीराउत छात्रावास जैसे कई संगठन स्थापित किये। उन्होंने इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल की घोषणा के खिलाफ विरोध किया और अंततः उन्हें कैद कर लिया गया।

 

  1. पूर्णिमा बनर्जी

 

पूर्णिमा बनर्जी इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कमेटी की सचिव थीं। वह उत्तर प्रदेश की क्रांतिकारी महिलाओं में से एक थीं जो 1930 के दशक के अंत में और 40 के दशक में स्वतंत्रता आंदोलन में सबसे आगे थीं। नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में उनकी भागीदारी के लिए गिरफ्तार किया गया था। संविधान सभा में पूर्णिमा बनर्जी के भाषणों के पहलुओं में से एक समाजवादी विचारधारा के प्रति उनकी दृढ़ प्रतिबद्धता थी। शहर समिति के सचिव के रूप में, वह ट्रेड यूनियनों, किसान सभाओं और अधिक ग्रामीण जुड़ाव के लिए प्रयासरत रहती थीं।

 

  1. राजकुमारी अमृत कौर

 

अमृत कौर का जन्म 2 फरवरी 1889 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ था। वह भारत की पहली स्वास्थ्य मंत्री थीं और उन्होंने दस साल तक वह पद संभाला। वह कपूरथला के पूर्व महाराजा के पुत्र हरनाम सिंह की बेटी थीं और इंग्लैंड के डोरसेट में शेरबोर्न स्कूल फार गर्ल्स से पढ़ाई की। 16 वर्षों तक वह महात्मा गांधी की सचिव रहीं और इसके लिए उन्होंने पढाई छोड़ दी। वह ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) की संस्थापक थीं और इसकी स्वायत्तता की उन्होंने वकालत की। वह महिलाओं की शिक्षा, खेल और स्वास्थ्य में उनकी भागीदारी की प्रबल प्रवक्ता थीं। उन्होंने ट्यूबरकुलोसिस एसोसिएशन ऑफ इंडिया, सेंट्रल लेप्रोसी एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की। 1964 में जब उनकी मृत्यु हो गई तो द न्यूयार्क टाइम्स ने उन्हें ‘अपनी देश की सेवा में राजकुमारी’ कहा था।

 

  1. रेणुका रे

 

वह एक आई.सी.एस अधिकारी सतीश चंद्र मुखर्जी और अखिल भारतीय महिला कांफ्रेंस (एआईडब्ल्यूसी) की एक सामाजिक कार्यकर्ता और सदस्य चरुलता मुखर्जी की बेटी थीं। युवा दिनों में रेणुका लंदन में रहीं और लंदन स्कूल ऑफ इकोनामिक्स से बी.ए किया। 1934 में एआईडब्ल्यूसी के कानूनी सचिव के रूप में, उन्होंने ‘भारत में महिलाओं की कानूनी अक्षमता’ नामक एक दस्तावेज प्रस्तुत किया। इसने शारदा विधेयक के प्रति एआईडब्ल्यूसी की निराशा को स्पष्ट किया और भारत में कानून के समक्ष महिलाओं की स्थिति की कानूनी समीक्षा को सामने रखा। रेणुका ने कॉमन सिविल कोड के पक्ष में वकालत की और कहा कि भारतीय महिलाओं की स्थिति दुनिया में सबसे अन्यायपूर्ण स्थितियों में से एक है। 1943 से 1946 तक वह केन्द्रीय विधान सभा, बाद में संविधान सभा और अनंतिम संसद की सदस्य थीं। 1952-57 में, उन्होंने पश्चिम बंगाल विधानसभा में राहत और पुनर्वास मंत्री के रूप में कार्य किया। 1957 में और फिर 1962 में, वह लोकसभा में मालदा से सदस्य थीं। वह 1952 में एआईडब्ल्यूसी की अध्यक्ष भी थीं, योजना आयोग की सदस्य और और शांति निकेतन में विश्व भारती विश्वविद्यालय की गवर्निंग बॉडी की सदस्य रहीं। उन्होंने अखिल बंगाल महिला संघ और महिला समन्वयक परिषद की स्थापना की।

 

  1. सरोजिनी नायडू

 

सरोजिनी नायडू का जन्म हैदराबाद, भारत में 13 फरवरी 1879 को हुआ था। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष होने वाली पहली भारतीय महिला थीं और भारतीय गणराज्य में पहली महिला गवर्नर नियुक्त हुई थीं। उन्हें ‘नाइटिंगेल ऑफ इंडिया’ कहा जाता है। उन्होंने किंग्स कॉलेज, लंदन और बाद में कैम्ब्रिज के गिरटन कॉलेज में अध्ययन किया। इंग्लैंड में मताधिकार अभियान में कुछ अनुभव के बाद, उन्हें भारत के कांग्रेस आंदोलन और महात्मा गांध ीि के असहयोग आंदोलन के लिए तैयार किया गया था। 1924 में उन्होंने भारतीयों के हित में अफ्रीका की यात्रा की और 1928-29 में कांग्रेस के आंदोलन पर व्याख्यान के लिए उत्तरी अमेरिका का दौरा किया।

भारत में वापस आने पर ब्रिटिश विरोधी गतिविधि के कारण वे कई बार जेल गईं (1930, 1932 और 1942-43)। वह 1931 में गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने गांधी जी के साथ लंदन गईं। सरोजिनी नायडू अपनी साहित्यिक प्रतिभा के लिए भी जानी जाती थीं और 1914 में उन्हें रॉयल सोसाइटी ऑफ लिटरेचर के एक फेलो के रूप में चुना गया था।

 

  1. सुचेता कृपलानी

वह हरियाणा के अंबाला शहर में 1908 में पैदा हुई थीं। उन्हें विशेष रूप से 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सुचेता कृपलानी की भूमिका याद की जाती है। कृपलानी ने 1940 में कांग्रेस पार्टी की महिला विंग की भी स्थापना की थी। स्वतंत्रता के बाद, कृपलानी की राजनीतिक यात्रा दिल्ली के एक सांसद और फिर उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार में श्रम, सामुदायिक विकास और उद्योग मंत्री के रूप में जारी रही। उन्होंने चंद्र भानु गुप्ता से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभाला और 1967 तक उत्तर प्रदेश के शीर्ष पद पर होते हुए वह भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं।

  1. विजयालक्ष्मी पंडित

विजया लक्ष्मी पंडित का जन्म 18 अगस्त 1900 को इलाहाबाद में हुआ था, और वह भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू की बहन थीं। 1932-1933, 1940 और 1942-19 43 में अंग्रेजों ने उन्हें तीन अलग-अलग मौकों पर कैद किया था।

राजनीति में पंडित का लंबा कैरियर आधिकारिक तौर पर इलाहाबाद नगर निगम के चुनाव के साथ शुरू हुआ। 1936 में, वह संयुक्त प्रांत की असेंबली के लिए चुनी गई, और 1937 में स्थानीय स्व-सरकार और सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्री बन गयीं वह पहली भारतीय महिला कैबिनेट मंत्री थीं।

सभी कांग्रेस पार्टी के पदाधिकारियों की तरह, उन्होंने 1939 में ब्रिटिश सरकार की इस घोषणा के विरोध में इस्तीफा दे दिया कि भारत द्वितीय विश्व युद्ध में भागीदार है। सितंबर 1953 में, वह यूएन जनरल असेंबली की पहली भारतीय और एशियाई महिला अध्यक्ष चुनी गयीं।

  1. एनी मास्कारेन

एनी मास्कारेन का जन्म केरल के तिरुवनंतपुरम से लैटिन कैथोलिक परिवार में हुआ था। वह त्रावणकोर राज्य कांग्रेस में शामिल होने वाली पहली महिलाओं में से एक थीं और त्रावणकोर राज्य कांग्रेस कार्यकारिणी का हिस्सा बनने वाली पहली महिला बनीं। वह त्रावणकोर राज्य में स्वतंत्रता और भारतीय राष्ट्र के साथ एकीकरण के आंदोलनों के नेताओं में से एक थीं।

अपनी राजनीतिक सक्रियता के लिए, उन्हें 1939-47 के बीच विभिन्न अवधि के लिए कैद किया गया था। मास्करेन आम चुनाव में 1951 में पहली लोकसभा के लिए चुनी गयी थीं। वह केरल की पहले महिला सांसद थीं। संसद में उनके चुनाव से पहले, उन्होंने 1949-50 के दौरान स्वास्थ्य मंत्रालय की प्रभारी मंत्री के रूप में संक्षिप्त सेवा दी थी।

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